आज खेतों में हम धान की एक से बढ़कर एक क़िस्म उगाते हैं, जिससे ढेर सारा चावल पैदा होता है। इन चावलों के एक से बढ़कर एक ब्रांड नेम भी होते हैं, जिसे खाकर लोगों में फर्जी वाले प्राउड भर जाता है, क्योंकि यही लोग अरेले बैठकर कभी-कभी इस बात पर चर्चा छेड़ देते हैं कि यार अब आजकल के चावल में पहले वाली बात नहीं रही। न तो अब के चावलों में पहले जैसा स्वाद होता है, न मिठास होती है और न ही वो पुराना वाला सोंधापन। जी हाँ, ऐसा ही है, क्योंकि आजकल लोग अपने देसी धान को उगाना ही भूल बैठे हैं, जिसमें ये सारी चीज़ें मसलन, सोंधापन, मीठापन और लज़ीज़ स्वाद हुआ करता है।
दिलचस्प है कि आज पूरा का पूरा हिन्दुस्तान जहाँ हाईब्रिड धान उगाने में लगा हुआ है, वहीं केरल के वायनाड के एक गाँव में रहने वाले 70 वर्षीय किसान चेरूवायल रामन पारंपरिक तरीक़े से न सिर्फ़ धान की खेती करते हैं बल्कि ये धान की देसी क़िस्मों को बचाने की मुहिम में भी लगे हुए हैं। आपको बता दें कि चेरूवायल रामन कुराचिया नामक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ये धान उगाने की उसी पद्यति पर क़ायम है, जो इनके पुरखे करते आये हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि चेरूवायल रामन को चावल की उपज में कमी आती है या फिर ये घाटा सहने वाले कोई किसान हैं।
जी हाँ, चेरूवायल रामन की ख़ासियत ही यही है कि ये परंपरागत ढंग से चावल उगाने के बावजूद मुनाफ़ा कमा लेते हैं, जबकि यह धान उगाने में पूर्ण जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। चेरूवायल रामन का देसी बीजों के प्रति इतना गहरा जुड़ाव है कि आज इनके पास देसी धान की क़रीब पचासों क़िस्म के बीज उपलब्ध हैं। फसल पैदा होने के बाद चेरूवायल रामन अलग-अलग क़िस्म के बीजों को भी जुटाते हैं और इन्हें दूसरे लोगों को सौंपकर उन्हें भी जैवक और परंपरागत ढंग से धान उलाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार चेरूवायल रामन के खेत में उगे धान से तैयार चावल का स्वाद चखने के लिए हर कोई तरसता रहता है।
Author: Amit Rajpoot
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