दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक हैं। उन्होंने अपने अथक प्रयासों और गहरे जुनून के कारण हिदुस्तान का सिनेमा से परिचय काराया, जो एक शताब्दी के बाद पूरी दुनिया में अपना डंका बजा रहा है। जी हाँ, भारतीय फ़िल्म उद्योग को आज पूरी दुनिया में लोग न सिर्फ़ जानते और पहचानते हैं, बल्कि देश और दुनिया के नामी कलाकार और शख़्सियत इसके मुतासिर रहते हैं, लेकिन ये इंडस्ट्री सभी के लिए आज आसान नहीं रह गयी है। हालांकि जब इसके पितामह फ़िल्में बनाया करते थे, तो लोगों को पकड़-पकड़कर और मिन्नतें करके फ़िल्मों में काम करवाते थे। बहरहाल, आज भारतीय फ़िल्म उद्योग ख़ूब फल-फूल रहा है, लेकिन समझने वाली बात है कि आख़िर भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के के परिवार के लोग इस दुनिया से क्यों दूर हैं?
वास्तव में यह एक हैरानी भरा संयोग है कि भारतीय फिल्मों के पितामह की फेमिली से कोई भी अब फिल्म मेकिंग में नहीं है। वजह यह थी कि साल 1922 के बाद फ़िल्म स्टूडियोज के कारोबारी फैसलों को लेकर साझीदारों से उनकी कभी बनी नहीं बनना है। इसमें सबसे ज़्यादा झगड़ा टिपिकल आर्ट वर्सेज कमर्शियल आर्ट का होता था। इस झगड़े में एक-एक पार्टनर अलग होने लगे। यद्यपि दादा साहेब फाल्के के बेटे ने फोटोग्राफी सीखी थी, पर उन्होंने अपना करिअर ज्यादा लंबा नहीं खींचा। इसकी वजह यह थी कि उन्होंने स्टूडियो के साझीदारों के साथ अपने पिता के भोगे हुए झगड़ों को क़रीब से देखा था। वास्तव में इन्हीं सब कारणों के चलते दादा साबेह फाल्के के परिवार के लोग और उनके रिश्तेदार इस फील्ड मे नहीं आये।
अच्छी चीज यह रही कि साल 1939 में पहली बार पृथ्वीराज कपूर ने एक समारोह में दादा साहेब की अहमियत रेखांकित की थी। तब तक बॉम्बे टॉकीज और प्रभात कंपनी जैसी बड़ी फिल्म निर्माण की कंपनियां आ गई थीं। उन लोगों ने फिल्म इंडस्ट्री के 25 साल पूरे होने पर यह समारोह आयोजित किया था, जिसमें दादा साहेब को पृथ्वी राज कपूर ने मान देकर सम्मानित किया था।
Author: Amit Rajpoot
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