भीख माँगना एक अभिशाप है या सामाजिक बुराई? भिक्षावृत्ति में लिप्त लोग, जिनमें कि शायद सबसे अधिक बच्चे शामिल होते हैं, पुण्य करने वाले लोगों के लिए धारक हैं या फिर उन लोगों के लिए इनकम के एसेट्स जो इन्हें चौराहों पर भीक माँगने के लिए बाध्य करते हैं और कुछ प्रेरित करते हैं। इन सबमें से भिक्षावृत्ति कुछ भी हो या लोग इसे किसी भी नज़रिये से निहारें, लेकिन भिक्षावृत्ति का स्याह सच तो यही है कि इसमें सने किशोरों और बच्चों के बचपन का नाश होता है। इससे राज्य की एक बड़ी विरासत का भी नाश होता है।
क्या पता कि भीख माँगने में लगा कौन सा शख़्स ख़ुद में युगपुरुष छुपाये बैठा हो, या कि एक भारी पूर्वाग्रह में जाकर हम यह मान ही बैठे हैं कि भीख माँगने वाले चेहरों में कभी चमक ही नहीं आ सकती है या उनका दिल और दिमाग़ हम जैसा नहीं है। बहरहाल, भीख माँगने में लगे लोगों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ना और उन्हें इस वृत्ति से निजात दिलाना किसी क्रान्ति जैसा है और इसमें जुटे हुये हैं उत्तराखण्ड के पिथौरगढ़ के रहने वाले क्रान्तिकारी अजय ओली।
अजय ओली बाल-भिक्षा के मुक्तिदाता हैं। इसके अलावा ये भीख माँगने वालों के साथ-साथ बाल मज़दूरी में लगे हज़ारों बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने में लगे हैं। साल 2016 में अजय ओली ने अपने घर पर ही ‘ओली चाइल्ड वेलफ़ेयर ट्रस्ट’ बनाकर ऐसे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम शुरू किया है जो भिक्षा-वृत्ति में थे या फिर बाल मज़दूरी कर रहे थे। आज अजय ओली भिक्षावृत्ति में सने 13,000 से अधिक बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था कर चुके हैं। इसके लिए पढ़ने वाले बच्चों का खाना अजय ओली की माँ बनाती हैं और उनकी पढ़ाई-लिखाई का काम इनके पिता देखते है।
आपको बता दें कि ऐसा कर पाने के लिए अजय ओली को ख़ासा संघर्ष और त्याग करना पड़ा है। उन्होंने चालीस लाख रुपये के सालाना कमाई वाले अपने इवेंट मैनेजमेंट के बिजनेस में शिथिलता लयी। इतना ही नहीं, लोगों को भिक्षावृत्ति समाप्त करने की मुहिम के प्रति जागरुक करने के लिए ये हमेशा नंगे पैर चलते हैं। ग़ौरतलब है कि अब तक अजय ओली सात राज्यों में क़रीब 12,500 किमी. की पदयात्रा कर चुके हैं। इस प्रकार, भीख मांगने की परंपरा समाप्त हो इसके लिए अजय रोज़ाना 40 किमी. नंगे पाँव पैदल चलते हैं।
Author: Amit Rajpoot
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