दिवाली के बाद देशभर में छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष के पष्ठी को मनाया जाने वाला त्यौहार है छठ, जिसे खासकर पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश व नेपाल जैसी जगहों पर मनाया जाता है। चार दिन की अवधि में मनाई जाने वाली छठ का अनुष्ठान बेहद ही कठोर होता है। छठ का उपवास रखने वाला शख्स खाने से तो दूर की बात है... पानी भी नहीं पी सकता। इसके अलावा सुबह और शाम को उसे लम्बे वक्त तक पानी में खड़े रहना पड़ता है और सूर्योद्य और सूर्यअस्त के बाद अर्घ्य देकर ही वो पानी से बाहर निकल सकता है। आमतौर पर ये उपवास महिलाएं ही रखती है, लेकिन समय बदल गया है अब पुरुष भी इस कठोर अनुष्ठान का पालन करने लगे हैं।
जैसे कि हमने बताया छठ पूजा का अनुष्ठान बेहद ही कठोर होता है, इसके नियम कायदे उससे भी ज्यादा कठोर होते हैं। चार दिन तक चलने वाले इस छठ का प्रसाद बेहद ही महत्वपूर्ण होता है, इसे बनाते वक्त कई जरूरी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जरा-सी चूक आपकी कड़ी मेहनत को बर्बाद कर सकती है।
इन्हीं एक नियम में सबसे जरूरी बात है, छठ का प्रसाद गैस के चूल्हे पर न बनाकर मिट्टी के चूल्हे पर बनाना।
जी हां, छठ का प्रसाद खासतौर पर मिट्टी के चूल्हे पर बनाकर तैयार किया जाता है। हर नियम के पीछे वजह होती है, इसके पीछे भी अहम वजह है-
छठ का प्रसाद मिट्टी के नये चूल्हे पर बनाने की वजह है प्रसाद का पूरी तरह से सात्विक होना। जी हां, गैस के चूल्हे पर हम खाना बनाते वक्त प्यार, लहसून व कई मांसाहारी चीज़ों का इस्तेमाल कर चुके होते है। जिस वजह से गैस चूल्हा सात्विक नहीं माना जाता। मिट्टी का नया चूल्हा पूरी तरह सा पवित्र माना गया है। इस चूल्हे पर प्रसाद का सभी खाना बनाया जाता है, जिसमें एक भी नमक वाली चीजें न बनी हो।
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